अब्सारों का तारा
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- 1 पहली ही नज़र ने कैसे दिल का वो रिश्ता बनाया जिसने मुझे उसकी आंखों का दीवाना बनाया आखरी सांस तलक अब तो ये छुड़ाए न छूटे ख़ुदा या तूने कैसा ये दिल का बंधन बनाया दे गयी ज़ख्म जो उसकी मासूम सी निग़ाहें क्यूँ फिर उसके होने के अहसास को मरहम बनाया जब होना न था कोई अंजाम-ए-महोब्बत का क्यूँ तूने फिर मुझे परवाना-ए-महोब्बत बनाया मुमकिन नही मुक्कदर मेरा की वो मेरा हो जाये क्यूँ फिर तूने उसे मेरे अब्सारों का तारा बनाया
- 2 मौलिक
- 3 “मल्हार”