अब्सारों का तारा

पहली ही नज़र ने कैसे दिल का वो रिश्ता बनाया
जिसने मुझे उसकी आंखों का दीवाना बनाया
आखरी सांस तलक अब तो ये छुड़ाए न छूटे
ख़ुदा या तूने कैसा ये दिल का बंधन बनाया
दे गयी ज़ख्म जो उसकी मासूम सी निग़ाहें
क्यूँ फिर उसके होने के अहसास को मरहम बनाया
जब होना न था कोई अंजाम-ए-महोब्बत का
क्यूँ तूने फिर मुझे परवाना-ए-महोब्बत बनाया
मुमकिन नही मुक्कदर मेरा की वो मेरा हो जाये
क्यूँ फिर तूने उसे मेरे अब्सारों का तारा बनाया

मौलिक

“मल्हार”

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