“इश्क़” (कविता) – Ishq (poem)

देखा जबसे तुमको जाना, जाना मैने हम तुमपे कितना मरतें हैं
इश्क़ तो इश्क़ है,इश्क़ में उम्र के बंधन नही हुआ करते हैं
भटक रहा हूँ लिये आरजू तेरी, अब तू ही मेरा दीप बुझा दे
तू मुझको चाहे और मुझको बेबस सा कर दे
छुपे छुपे से रहते है सरेआम नही हुआ करते
कुछ रिश्ते बस एहसास है होते, उनके नाम नही हुआ करते
भावनाओं एहसासों को समझो,इस तरह तो दिल किसी का तोड़ा नही करते
इस तरह तो दिल तोड़ा नही करते
इस तरह तो दिल तोड़ा नही…….
मौलिक
“मल्हार”

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