जिंदगी

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बैरंग सी हो गयी है मेरी जिंदगी
तुझे अपनी जिंदगी का रंग लिखूँ
बर्बाद हुई महोब्बत मेरी कैसे
तुझे महोब्बत के टूटे ख़्वाब लिखूँ
मेरे इश्क़ का राज़ क्या है
तुझको उसका जवाब लिखूँ
किस दरिया में डूबा हूँ मैं
तेरी आँखों को उस दरिया का नाम लिखूं
सोचा तुझको एक किताब लिखूँ
मेरे इश्क़ के उसमें हिसाब लिखूँ
मेरी मदहोश ग़ज़लों का राज क्या है
तेरा सुन्दर सबाह लिखूँ
तुझे ना पा सकने का सब्बाब क्या है
किस्मत अपनी मैं ख़राब लिखूँ
मेरी वफ़ा की इंतेहा क्या है
आसमां जितना अथाह लिखूँ
क्यूँ इतना खोया-सा रहता हूँ
किस्सा अपना तमाम लिखूँ
सोचा तुझको एक किताब लिखूँ
मेरे इश्क़ के उसमें हिसाब लिखूँ

रोहित डोबरियाल
” मल्हार”

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