“काश”
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- 1 ए काश वो किसी दिन तन्हाइयों में तो आये कब तलक उन्हें ख़्वाबों में ही ढूंढा जाये कह दो इश्क़ ग़र ना हो जो तुमको हमसे तो इस तरहा गलफत में ना छोड़ के जाये कत्ल ना कर दे हमको उसकी मासूम अदाएं ए काश वो किसी दिन तन्हाइयों में तो आये शिकायतें तो हजार लिए बैठे है तेरी जालिम तू बेदर्द कभी ख़्वाब्बों की तन्हाई में तो आये अब आ भी जाओ मेरे आँखों के रु-ब-रु तुम कब तलक तुम्हें ख़्वाबों में ही ढूंढा जाये ए काश वो किसी दिन तन्हाइयों में तो आये ए काश वो किसी दिन तन्हाइयों ………..
- 2 रोहित डोबरियाल “मल्हार”
Very good… Bro
I love it
Very nice dear