Love shayari
मरज़-ए-जुदाई
महरुमी-ए-मरज़ है जुदाई की,
मशवरा चाहिये
उम्मीद में तेरी,
तन्हाई के दिन चार चाहिये।।
तेरी जुदाई का दर्द
सीने में बैठा है राज़ कर
आज दिल उदास है
इक मुलाकात चाहिये।।
आ जाओ पास तुम सांसे हैं
बिखरने लगी
मरज़-ए-इश्क़ है लगा ,
तेरी इंतिहा चाहिये।।
तमन्ना इक ही है
अब तो दिल में मेरी
परेशां बहुत हूँ
बस तेरा अहसान चाहिये।।
बे-आसरा हो गया हूँ
अपनी ही धड़कनों से
उम्मीद में तेरी “मल्हार” है
आसरा चाहिये।।
“मल्हार”
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