महोब्बत

कसूर था मेरी इन निगाहों का मासूम दिल तेरा क्यूँ हो बैठा

सोचा था चुप ही रहेंगे

पर जुबां-ए-बेवफा इजहार कर बैठा

छोटी सी है ये जिंदगी मेरी

तेरे साथ जीना चाहता हूँ

रोज़ इबादत में खुदा से तुझको ही मांगता फिरता हूँ

हसरतें मचल जाती हैं

सोचता हूँ जब तू सोचे एक पल के लिए

अंजाम-ए-महोब्बत क्या होगा

जब तू मिले उम्रभर के लिए

तेरा ही सजदा किया है

तेरा ही सजदा करूँगा

महोब्बत रहेगी ताउम्र तुझ से जब तक मरूँगा

 रोहित डोबरियाल

“मल्हार”

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