सोचता हूँ

सोचता हूं लौ चिराग़ों की बुझा दूँ मैं अभी
ये ख्याल क्यूँ दिल में मेरे आता है सवि,
दिल से आहें मुख से दुआएं निकलती है सवि
तू स्वप्न में आकर मेरे,वापस जो जाती है कभी
सोचता हूँ तोड़ दूँ इस दिल के बंधन सभी
जो मेरे दिल को तेरे दिल से बांधे है सवि
इश्क़ बेइंतहा, हमको तुमसे है सवि
मेरे शहरा में तो आओ, तो बताएँ कभी
सोचता हूं लौ चिराग़ों की बुझा दूँ मैं अभी
ये ख्याल क्यूँ दिल में मेरे आता है सवि,
एक चाहत है ख़ुदा से, बस मेरी अभी
लूँ जन्म जब भी इश्क़ तू हो मेरा सवि
भरी बज़्म में इज़हार कर दूँ मैं अभी
गर हो तसल्ली उस बज़्म में तुम हो सवि
रब्त है दरमियान समझो तुम भी कभी
खींच लाती है तेरी मुस्कान मुझको सवि
सोचता हूं लौ चिराग़ों की बुझा दूँ मैं अभी
ये ख्याल क्यूँ दिल में मेरे आता है सवि,
चाँद भी मेरे अंगना आ जाये गर अभी
किन्तु रौनक तो तेरे आने से ही होगी सवि
झुक गया जो तेरे कदमों में अभी
ये आसमां तुम मेरा समझो ना सवि
शुक्रिया तेरा, मेरे दिल में आने को सवि
महफ़िल-ए-जज़्बात वर्ना अधूरी थी कभी
हूँ चिराग़-ए-सहरा बुझा जा तू अभी
ये ख्याल क्यूँ दिल में मेरे आता है सवि,
सोचता हूं लौ चिराग़ों की बुझा दूँ मैं अभी
ये ख्याल क्यूँ दिल में मेरे आता है सवि,
ये ख्याल क्यूँ दिल में मेरे आता है सवि,
ये ख्याल क्यूँ दिल में मेरे
“मल्हार”

“तेरा साथ” रोहित डोबरियाल “मल्हार”

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