ये कैसे और क्यूँ हो गया
ये क्यूँ और कैसे हो गया
हद में रहकर भी बेहद हो गया
था कभी जो नज़रों और ख्वाबों में
ना जाने अब क्यूँ ओझल हो गया
चाहूँ मैं उसको जितना ज्यादा
वो दूर क्यूँ मुझसे उतना हो गया
ये क्यूँ और कैसे हो गया
हद में रहकर भी बेहद हो गया
सोचा भूल जाऊँ अब उसे मैं
पर वो क्यूँ मेरी रूह में बस गया
लौट-लौट कर आती हैं यादें तेरी
क्यूँ हर लम्हा मेरा तेरे नाम हो गया
पाना क्यूँ मेरे लिए तुझको
तन्हा सा इक ख्वाब हो गया
ये इश्क़ हुआ है जो मुझको
ना जाने कब और कैसे हो गया
ये क्यूँ और कैसे हो गया
हद में रहकर भी बेहद हो गया
हद में रहकर भी बेहद हो गया….
“मल्हार”
“अब मैं लौट आया हूँ Hindi Poem Amit Baluni – एकांत
nice poetry..